दक्षिण अफ़्रीका से लौटने के कुछ दिन बाद ही गाँधी जी शांतिनिकेतन पहुँच गए थे ! उनकी मन्डली उस समय वही पर ठहरि हुई थी ! काका कालेलकर भी उन दिनों वही पर थे !उन दिनों बहुत रात तक बे दोनों बातें कराते रहै !सबेरे उठकर साथ साथ प्रार्थना की ! उसके बाद काकासाहेब आदि सभी मज़दूरी के लिए चले गए !
वहां से लौटकर वे क्या देखते है कि उनके लिये अलग-अलग थालियो में नाश्ता अओर फल आदि सबकुछ सन्वारकर तैयार रखे हुए है !
काकासाहेब सोचने लगे - वे सब तो कम पर गए थे , फिर यह सब मेहनट किसने की ? माँ का यह स्नेह किसने उनपर लुटाया ? उन्होंने गाँधी जी से पूछा "यह सब किसने किया है ?"
उन्होंने उत्तर दिया . "क्यों ? मैंने किया है !"
काकासाहेब संकोच के साथ बोले, " आपने क्यों किया? आप यह सब करे और हम बैठे बैठे खाए , यह मुझे उचित नही मालूम देता !"
गाँधीजी ने कहा, " क्यों , इसमें अनुचित क्या है ?"
काकासाहेब बोले, "अल जैसों की सेवा लेने की योग्यता हममें होनी चाहिये न !"
सहज भाव से गाँधीजी ने कहा," निश्चय ही तुम उसके योग्य हो ! तुम सब तो कम पर गए थे ! नाश्ता करने के बाद फिर कम पर जूट जाओगे ! मुझे अवकाश ही अवकाश था , इसलिये मैंने तुम लोगों का समय बचाया ! एक घंटा कम करके यह नाश्ता करने की योग्यता तुमने अपने आप प्राप्त कर जी है !"
Sunday, June 14, 2009
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13 comments:
"इसमें अनुचित क्या है ?"
इसमें अनुचित क्या है?
चलिए ऐसे ही दिल्लगी के तौर पर, या यूं कहूं आलोचना के दृष्टिकोण की विविधताओं पर इशारे के रूप में, या ऐसे ही यूं भी सोचने के लिए इस प्रश्न के जबाब देखते हैं-
१.पहला- गांधी जी खुद श्रम करने नहीं गये, उन्होंने जो भी परिस्थितियां रही हो, अपने लिए अवकाश चुना। जबकि बाकि सभी, और वे सब मित्र-मंडली के लोग थे, मेहनत करने के लिए गए थे। क्या यह अनुचित नहीं है?
२.दूसरा- गांधी जी ने अवकाश चुना,इसमें खुद वे एक अनुचितता देख पा रहे थे, शायद इसी की ग्लानि को कम करने के लिए उन्होंने मंडली के लिए नाश्ता तैयार करके, या यूं कहे सिर्फ़ परोस कर रखा। और अंत में अपने इस कर्म की जो आदर्शवादी आभामंडल से मंडली के सामने प्रस्तुति की, उससे सभी मित्रों की आत्माएं उनके इस आदर्श कर्म, व्यक्तित्व और अहसान के भारी बोझ के तले दब गईं।
यह सीधी-सीधी आत्मिक हिंसा क्या अनुचित नहीं है।
जरा इस तरह से सोच कर भी देखिए तो!
बाकि इरादे बिल्कुल नेक हैं, और गांधी जी के महान व्यक्तित्व और पूरे देश को प्रभावित करने के उनके सामर्थ्य में पूरी श्रृद्धा है, और उनसे कई रास्ते ढूंढते हैं।
achhi post
badhaai !
प्रिय बन्धु,
जय हिंद
इसमें तो कुछ अनुचित नहीं ,लेकिन यह ज़रूर अनुचित है कि आपने आठ महीनो में अपनी प्रोफाईल तक पूरी नहीं की
अगर आप अपने अन्नदाता किसानों और धरती माँ का कर्ज उतारना चाहते हैं तो कृपया मेरासमस्त पर पधारिये और जानकारियों का खुद भी लाभ उठाएं तथा किसानों एवं रोगियों को भी लाभान्वित करें
achhi post
badhaai !
bahut khas. naryan narayan
भईया वो गांधी जी है कुछ भी कर सकते हैं सब सही ही होगा
जय हिंद
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी
blog jagat men swagat.
हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है......
ब्लॉगजगत में स्वागत है आपका....अच्छा प्रेरणादायी प्रसंग....बधाई.....और वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें तो और भी अच्छा रहेगा....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
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