Sunday, June 14, 2009

इसमें अनुचित क्या है ?

दक्षिण अफ़्रीका से लौटने के कुछ दिन बाद ही गाँधी जी शांतिनिकेतन पहुँच गए थे ! उनकी मन्डली उस समय वही पर ठहरि हुई थी ! काका कालेलकर भी उन दिनों वही पर थे !उन दिनों बहुत रात तक बे दोनों बातें कराते रहै !सबेरे उठकर साथ साथ प्रार्थना की ! उसके बाद काकासाहेब आदि सभी मज़दूरी के लिए चले गए !
वहां से लौटकर वे क्या देखते है कि उनके लिये अलग-अलग थालियो में नाश्ता अओर फल आदि सबकुछ सन्वारकर तैयार रखे हुए है !
काकासाहेब सोचने लगे - वे सब तो कम पर गए थे , फिर यह सब मेहनट किसने की ? माँ का यह स्नेह किसने उनपर लुटाया ? उन्होंने गाँधी जी से पूछा "यह सब किसने किया है ?"
उन्होंने उत्तर दिया . "क्यों ? मैंने किया है !"
काकासाहेब संकोच के साथ बोले, " आपने क्यों किया? आप यह सब करे और हम बैठे बैठे खाए , यह मुझे उचित नही मालूम देता !"
गाँधीजी ने कहा, " क्यों , इसमें अनुचित क्या है ?"
काकासाहेब बोले, "अल जैसों की सेवा लेने की योग्यता हममें होनी चाहिये न !"
सहज भाव से गाँधीजी ने कहा," निश्चय ही तुम उसके योग्य हो ! तुम सब तो कम पर गए थे ! नाश्ता करने के बाद फिर कम पर जूट जाओगे ! मुझे अवकाश ही अवकाश था , इसलिये मैंने तुम लोगों का समय बचाया ! एक घंटा कम करके यह नाश्ता करने की योग्यता तुमने अपने आप प्राप्त कर जी है !"